Thursday, May 21, 2020

इंतज़ार है...

चित्र:लता 

अब भी रोज़ सुबह क्षितिज पर वह हाज़री लगाता होगा
कभी सिंदूरी, कभी नारंगी, तो कभी सुनहरा पीला
तुम उसके स्वागत में कभी उछलते होगे, कभी मचलते होगे
तो कभी रूठे हुए बच्चे की तरह गुमसुम रहते होगे
अब भी तुम्हारी लहरें दौड़-दौड़कर किनारे को चूमती होंगी
मटमैली रेत तुम्हारे दूधिया झाग से लगातार सराबोर होती होगी
आसमान में उन्मुक्त पंछी अठखेलियाँ करते, गाते होंगे
नटखट बादल रूप बदल-बदल कर फ़लक पर छाते होंगे


कभी तुम्हारी लहरों पर नौकाओं में मछुआरे हिलोरें लिया करते थे
और तट पर सैर करनेवाले तेज़-तेज़ चला करते थे 
कोई मित्रों के साथ होता, तो कोई बिलकुल अकेला
कोई मुँड़ेर पर सुस्ताता, तो कोई बिना रुके ही चला
कोई अपने कैमरे में तस्वीर क़ैद करता
कभी सामने तुम होते, तो कभी उसकी प्रेमिका
तुमसे उठती ठंडी बयार से तरोताज़ा होकर हम
दिन की शुरुआत किया करते थे एकदम खुश-फ़हम


लेकिन अब तो उसके आने की ख़बर तब होती है
जब खिड़की पर गुनगुनी धूप दस्तक देती है
सूना पड़ा होगा तुम्हारा तट
और सूनी हैं गलियाँ
घर से बाहर निकलने पर
जो लग गई हैं पाबंदियाँ
इंतज़ार है फ़िर से तुम्हें देखने का
और तुम्हारे नित-नए रूप के साथ हर दिन का आग़ाज़ करने का