हाल ही में "कौन बनेगा करोड़पति" (केबीसी) में हिस्सा लेनेवाली दो प्रतियोगियों ने बहुत प्रभावित किया. संयोग की बात है कि दोनों महिलाएँ थीं. पहली, बबिता ताड़े महाराष्ट्र के अमरावती के निकट एक कस्बे अंजनगाँव सुर्जी से हैं. बहुत ही हँसमुख, सौम्य व्यक्तित्ववाली बबिता एक सरकारी स्कूल में ४५० विद्यार्थियों के लिए दोपहर का भोजन बनाती हैं. उनके पति उसी स्कूल में चपरासी हैं. एक ख़ानसामा की बेटी बबिता अपनी स्वादिष्ट खिचड़ी के लिए बच्चों में ख़ासी लोकप्रिय हैं. घर की ज़िम्मेदारी में हाथ बँटाने के लिए उन्हें अपनी स्नातकोत्तर शिक्षा अधूरी ही छोड़नी पड़ी, लेकिन चूँकि पढ़ाई-लिखाई में उनकी दिलचस्पी है, जैसे मौका मिलता है वैसे वह किताबें,अख़बार आदि पढ़ लेती हैं. सामान्य ज्ञान की इसी पूँजी के सहारे वह केबीसी में शामिल होने आई थीं.
वैसे तो अमिताभ बच्चन अपने सामने बैठे हर प्रतियोगी को सहज बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन फ़िर भी उनके जैसे महानायक का सामना करना आसान नहीं. बबिता न सिर्फ़ अपनी सादगी और शालीनता के साथ हॉट सीट पर टिकी रहीं, उन्होंने सारे सवालों के जवाब धैर्य और सूझबूझ के साथ दिए, और एक करोड़ रुपए जीत गईं. एक करोड़ की रकम जीतने में सामान्य ज्ञान के साथ उनके संयत व्यवहार और सकारात्मक विचार का भी बहुत बड़ा योगदान रहा होगा. उन्होंने अपनी ज़िंदगी की मुश्किलों को बयान तो किया, लेकिन उनका रोना नहीं रोया.
कार्यक्रम के बीच अमिताभ बच्चन अक्सर पूछते हैं कि जीती हुई रकम का आप क्या करेंगे. बबिता की चाहत सिर्फ़ एक मोबाईल फ़ोन की थी. एक करोड़ जीतने के बाद जब बच्चन साहब ने उनसे कहा कि अब तो आपको काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है, तो उनका जवाब था कि काम तो वह करती रहेंगी क्योंकि उन्हें अपने काम से प्यार है. निश्चय ही इस महिला ने एक करोड़ के साथ-साथ दर्शकों का मन भी जीत लिया होगा. न उनमें अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर कोई हीन भावना दिखी, और न ही अपने काम को लेकर किसी कमतरी का अहसास. अपने काम के प्रति समर्पण की भावना और स्कूल के बच्चों के प्रति उनके स्नेह को देखकर दर्शकों को भी उनकी सकारात्मकता ने छू लिया.
माना कि इतने बड़े रियलिटी शो में शिरकत करने वालों को कैमरे के सामने पेश करने से पहले कई तरह की सूचनाएँ दी जाती होंगी, उनकी छवि को तराशा जाता होगा, और जनता के सामने प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत होने के लिए उन्हें कुछ गुर सिखाए जाते होंगे. बावजूद इसके बबिता की स्वाभाविक सादगी छुप न सकी. साथ ही अमिताभ बच्चन आज जिस मक़ाम पर हैं, वहाँ से उनका आम जनता के साथ उठना-बैठना, सभी प्रतियोगियों के साथ आदरपूर्ण और मित्रवत व्यवहार, हँसी-मज़ाक करना, और सुपरस्टार की छवि के बोझ से मुक्त होकर सबके साथ सामान्य आचरण करना आदि इस शो को महज प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम नहीं, आपसी संवाद को रेखांकित करती एक मानवीय गतिविधि बना देते है.
इसी सन्दर्भ में जिनका ज़िक्र किया जा सकता है ऐसी दूसरी महिला हैं रूमा देवी. यह विशेष कार्यक्रम कर्मवीर में अतिथि बनकर आई थीं. राजस्थान के बाड़मेर ज़िले की रहनेवाली रूमा देवी को हस्तकला के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने के लिए इस वर्ष राष्ट्रपति ने "नारी शक्ति पुरस्कार" से नवाज़ा है. टीवी के पर्दे पर इनकी उपस्थिति बेहद दिलकश और ऊर्जावान थी. पारम्परिक राजस्थानी पोशाक में सजीं रूमा देवी ने खुलेपन और आत्मविश्वास के साथ अपनी कहानी सुनाई. वह महज आठवीं कक्षा तक स्कूल गईं. कम उम्र में शादी होने के बाद धन के अभाव में अपने छोटे बच्चे का इलाज नहीं करा पाईं और उसे खो दिया. घूँघट की प्रथा का आदर करते हुए उन्होंने अपनी दादी से सीखा हुआ कशीदाकारी का काम घर से ही शुरू किया और धीरे-धीरे अपने जैसी कई महिलाओं को अपने साथ जोड़कर उन्हें भी रोज़गार दिलाया. आज २२ हज़ार महिलाएँ उनके साथ कार्यरत हैं. उनके बनाए वस्त्र और अन्य सामान जैसे टेबल कवर, कुशन कवर आदि की भारत में और विदेश में भी बहुत माँग है.
रूमा देवी ने अपने काम के सिलसिले में विदेश दौरे भी किए हैं, और व्यावसायिक मॉडेल्स के साथ फैशन शो में रैम्प वॉक भी. केबीसी के विशेष कार्यक्रम के दौरान वह लगातार मुस्कुरा रही थीं और बेबाकी से ठहाके भी लगा रही थीं. अतिथि के रूप में उनका साथ देने आई थीं अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा. सोनाक्षी के ग्लैमर और चमक-दमक के सामने रूमा देवी कहीं भी कम नहीं लग रही थीं, बल्कि महज ३० वर्ष की उम्र में हासिल की उपलब्धियों की रोशनी में उनका आकर्षक व्यक्तित्व और भी निखर उठा था. उन्होंने १२ लाख ५० हज़ार की रकम जीती और उसे अपने साथ काम करती महिलाओं के उत्थान के लिए इस्तेमाल करने की इच्छा जताई.
गाँव की मिट्टी की खुशबू अपने साथ लेकर आईं बबिता और रूमा देवी की कहानियाँ प्रेरणादायी तो हैं ही, साथ ही यह दूर-दराज क्षेत्रों में बसे उन अनगिनत लोगों को सपने देखने की हिम्मत देती हैं जो अपनी मेहनत, कौशल और विश्वास के बूते पर अपने आपको साबित करने के लिए प्रयत्नरत हैं.
यह लेख इन्दौर से प्रकाशित दैनिक "प्रजातंत्र" में आज २६ सितम्बर २०१९ के अंक में प्रकाशित हुआ है.
वैसे तो अमिताभ बच्चन अपने सामने बैठे हर प्रतियोगी को सहज बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन फ़िर भी उनके जैसे महानायक का सामना करना आसान नहीं. बबिता न सिर्फ़ अपनी सादगी और शालीनता के साथ हॉट सीट पर टिकी रहीं, उन्होंने सारे सवालों के जवाब धैर्य और सूझबूझ के साथ दिए, और एक करोड़ रुपए जीत गईं. एक करोड़ की रकम जीतने में सामान्य ज्ञान के साथ उनके संयत व्यवहार और सकारात्मक विचार का भी बहुत बड़ा योगदान रहा होगा. उन्होंने अपनी ज़िंदगी की मुश्किलों को बयान तो किया, लेकिन उनका रोना नहीं रोया.
कार्यक्रम के बीच अमिताभ बच्चन अक्सर पूछते हैं कि जीती हुई रकम का आप क्या करेंगे. बबिता की चाहत सिर्फ़ एक मोबाईल फ़ोन की थी. एक करोड़ जीतने के बाद जब बच्चन साहब ने उनसे कहा कि अब तो आपको काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है, तो उनका जवाब था कि काम तो वह करती रहेंगी क्योंकि उन्हें अपने काम से प्यार है. निश्चय ही इस महिला ने एक करोड़ के साथ-साथ दर्शकों का मन भी जीत लिया होगा. न उनमें अपनी आर्थिक स्थिति को लेकर कोई हीन भावना दिखी, और न ही अपने काम को लेकर किसी कमतरी का अहसास. अपने काम के प्रति समर्पण की भावना और स्कूल के बच्चों के प्रति उनके स्नेह को देखकर दर्शकों को भी उनकी सकारात्मकता ने छू लिया.
माना कि इतने बड़े रियलिटी शो में शिरकत करने वालों को कैमरे के सामने पेश करने से पहले कई तरह की सूचनाएँ दी जाती होंगी, उनकी छवि को तराशा जाता होगा, और जनता के सामने प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत होने के लिए उन्हें कुछ गुर सिखाए जाते होंगे. बावजूद इसके बबिता की स्वाभाविक सादगी छुप न सकी. साथ ही अमिताभ बच्चन आज जिस मक़ाम पर हैं, वहाँ से उनका आम जनता के साथ उठना-बैठना, सभी प्रतियोगियों के साथ आदरपूर्ण और मित्रवत व्यवहार, हँसी-मज़ाक करना, और सुपरस्टार की छवि के बोझ से मुक्त होकर सबके साथ सामान्य आचरण करना आदि इस शो को महज प्रश्नोत्तरी का कार्यक्रम नहीं, आपसी संवाद को रेखांकित करती एक मानवीय गतिविधि बना देते है.
इसी सन्दर्भ में जिनका ज़िक्र किया जा सकता है ऐसी दूसरी महिला हैं रूमा देवी. यह विशेष कार्यक्रम कर्मवीर में अतिथि बनकर आई थीं. राजस्थान के बाड़मेर ज़िले की रहनेवाली रूमा देवी को हस्तकला के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम करने के लिए इस वर्ष राष्ट्रपति ने "नारी शक्ति पुरस्कार" से नवाज़ा है. टीवी के पर्दे पर इनकी उपस्थिति बेहद दिलकश और ऊर्जावान थी. पारम्परिक राजस्थानी पोशाक में सजीं रूमा देवी ने खुलेपन और आत्मविश्वास के साथ अपनी कहानी सुनाई. वह महज आठवीं कक्षा तक स्कूल गईं. कम उम्र में शादी होने के बाद धन के अभाव में अपने छोटे बच्चे का इलाज नहीं करा पाईं और उसे खो दिया. घूँघट की प्रथा का आदर करते हुए उन्होंने अपनी दादी से सीखा हुआ कशीदाकारी का काम घर से ही शुरू किया और धीरे-धीरे अपने जैसी कई महिलाओं को अपने साथ जोड़कर उन्हें भी रोज़गार दिलाया. आज २२ हज़ार महिलाएँ उनके साथ कार्यरत हैं. उनके बनाए वस्त्र और अन्य सामान जैसे टेबल कवर, कुशन कवर आदि की भारत में और विदेश में भी बहुत माँग है.
रूमा देवी ने अपने काम के सिलसिले में विदेश दौरे भी किए हैं, और व्यावसायिक मॉडेल्स के साथ फैशन शो में रैम्प वॉक भी. केबीसी के विशेष कार्यक्रम के दौरान वह लगातार मुस्कुरा रही थीं और बेबाकी से ठहाके भी लगा रही थीं. अतिथि के रूप में उनका साथ देने आई थीं अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा. सोनाक्षी के ग्लैमर और चमक-दमक के सामने रूमा देवी कहीं भी कम नहीं लग रही थीं, बल्कि महज ३० वर्ष की उम्र में हासिल की उपलब्धियों की रोशनी में उनका आकर्षक व्यक्तित्व और भी निखर उठा था. उन्होंने १२ लाख ५० हज़ार की रकम जीती और उसे अपने साथ काम करती महिलाओं के उत्थान के लिए इस्तेमाल करने की इच्छा जताई.
गाँव की मिट्टी की खुशबू अपने साथ लेकर आईं बबिता और रूमा देवी की कहानियाँ प्रेरणादायी तो हैं ही, साथ ही यह दूर-दराज क्षेत्रों में बसे उन अनगिनत लोगों को सपने देखने की हिम्मत देती हैं जो अपनी मेहनत, कौशल और विश्वास के बूते पर अपने आपको साबित करने के लिए प्रयत्नरत हैं.
यह लेख इन्दौर से प्रकाशित दैनिक "प्रजातंत्र" में आज २६ सितम्बर २०१९ के अंक में प्रकाशित हुआ है.
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