हाल ही में फिल्म "इमर्जेंसी " देखते हुए पर्दे पर कई बार पुपुल जयकर के क़िरदार से आमना-सामना हुआ. आज की पीढ़ी के कई लोग उनसे वाक़िफ़ नहीं होंगे. वह इंदिरा गाँधी की बचपन की मित्र तो थीं ही, प्रधान मंत्री बनने के बाद भी इंदिरा गाँधी का उनके साथ बहुत निकट का नाता था. फिल्म के दौरान मुझे उस बातचीत की याद आई जो मैंने दिल्ली में पुपुल जयकर के साथ की थी, और जो इंटरव्यू की शक्ल में ९ जून, १९८५ के नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुई थी. मैं उस समय नवभारत टाइम्स में बतौर उप-संपादक काम करती थी. अब वह दुनिया बहुत पीछे छूट चुकी है, लेकिन अख़बार के पीले पड़ चुके पन्नों पर अपने लेख आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं. कुछ पन्ने जर्जर हो गए हैं. सोचा, क्यों न अपनी इन यादों को अपने ब्लॉग पर सहेज कर रखूँ. तो यह है उसी कोशिश की पहली कड़ी, यानी पूरा इंटरव्यू जस का तस:
पहला भारत महोत्सव लंदन में १९८२ में आयोजित हुआ था. उसकी परिकल्पना और संयोजन में श्रीमती पुपुल जयकर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी. फ़्रांस और अमेरिका में हो रहे भारत महोत्सव में भी उनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है--वह भारत महोत्सव की सलाहकार समिति की अध्यक्ष हैं. श्रीमती जयकर लम्बे समय से हस्तकला और हथकरघा की दुनिया से जुड़ी हुई हैं और इससे सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण पदों पर काम करती रही हैं. उन पर कृष्णमूर्ति के दर्शन का गहरा असर है. ७० बरस पहले उत्तर प्रदेश के इटावा में जन्मी श्रीमती जयकर आज भी अपने काम में सक्रिय हैं.
फ़्रांस और अमेरिका में हो रहे भारत महोत्सव को लेकर कुछ सवालों के साथ मैंने उनके निवास, ११ सफ़दरजंग रोड पर उनसे बातचीत की. बातचीत शुरू करने से पहले ही उन्होंने साफ़-साफ़ कहा--" तुम जो पूछना चाहो, बेहिचक पूछो. कोई भी सवाल मुझे बुरा नहीं लगेगा." वे आराम से, बड़ी तसल्ली के साथ, मुस्कुराते हुए बातचीत करती हैं और हिंदी के बजाय अंगेज़ी में बात करना उन्हें ज़्यादा आसान लगता है. बातचीत के कुछ अंश:
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भारत महोत्सव के उपलक्ष्य में १९८५ में जारी डाक टिकट |
भारत महोत्सव का उद्देश्य विदेश में भारत की छवि पेश करना है. लेकिन कैसी छवि?
हम विदेशियों के सामने भारत की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत करना चाहते हैं. हम इसी की भरसक कोशिश कर रहे हैं. कई क्षेत्रों के लोग इसमें हिस्सा लेने जा रहे हैं. इससे वहाँ के लोग जानेंगे कि हमारा संगीत कैसा है, हमारा रंगमंच कैसा है, हमारा नृत्य कैसा है, प्रदर्शनकारी कलाएँ कैसी हैं...
लेकिन यह सब तो एक आम भारतीय आदमी तक भी नहीं पहुँचता. उसे अच्छा संगीत सुनने या अच्छा नाटक, नृत्य देखने का मौका ही कहाँ मिलता है ?
यह बिलकुल सही है कि उसे मौका नहीं मिलता. मैं खुद काफ़ी अरसे से यह कोशिश कर रही हूँ कि एक भारत महोत्सव भारत में ही किया जाए, जिससे हमारे लोग, हमारे युवा, हमारे बच्चे हमारी महान सांस्कृतिक परम्परा के बारे में जानें, उसे उसके सही रूप में देख पाएँ. मैंने सरकार के सामने यह सुझाव रखा भी है.
इस तरह के महोत्सव के आयोजन में क्या ऐसा नहीं लगता कि हम अपनी "संस्कृति" को डिब्बाबंद किसी चीज़ की तरह बाहर भेज रहे हैं?
तो इसका और कौन-सा तरीका हो सकता है?
विदेश से विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने लोगों को यहाँ भी तो बुलाया जा सकता है. वे अपनी तरह से भारत को देखेंगे और अपने देश लौटकर उसके बारे में लोगों को बताएँगे. या फ़िर पर्यटकों को ज़्यादा सुविधाएँ , सस्ते हवाई टिकट दिए जा सकते हैं.
पर्यटक सुविधाएँ नहीं चाहते. वर्ना भारत के दरवाज़े तो हमेशा खुले रहे हैं. पर्यटक किसी भी वक़्त आ सकते थे. लेकिन उनके दिमाग़ के सांस्कृतिक दायरे में भारत की कोई जगह थी ही नहीं. पर हम जानते हैं कि हमारी सांस्कृतिक परम्परा जितनी प्राचीन है, उतनी ही महान भी. इसीलिए भारत की नई प्रगतिशील तस्वीर के साथ दुनिया के सामने उसकी प्राचीन परम्पराओं की तस्वीर पेश करना हमारी ज़िम्मेदारी है.
और किसी देश ने तो अपनी संस्कृति के प्रदर्शन का ऐसा कोई आयोजन किसी अन्य देश में नहीं किया?
नहीं, इतना बड़ा सांस्कृतिक आयोजन पहले कभी कहीं नहीं हुआ.
यह महोत्सव इतना लम्बा क्यों है? सुना है अमेरिका में १८ महीने चलेगा.
मुख्य कार्यक्रम तो करीब इस दिसम्बर तक ख़त्म हो जाएँगे। फ़िर ४०-५० अलग-अलग प्रदर्शनियाँ अमेरिका के ६० - ७० शहरों का दौरा करेंगी. यह काफ़ी दिनों तक चलता रहेगा. फ़िर समापन समारोह के वक़्त एक और बड़ा आयोजन हो सकता है. यदि हमें विदेशियों को हमारा देश दिखाना ही है, तो पूरी शान के साथ दिखाना चाहिए, वर्ना ऐसे आयोजन का कोई मतलब नहीं है.
लंदन में भारत महोत्सव हुए काफ़ी अर्सा हो गया. उसका कोई साफ़-साफ़ प्रभाव नज़र आता है?
बिलकुल! वहाँ भारत की पृष्ठभूमि पर अचानक इतनी सारी फिल्में बनीं. महोत्सव ने वहाँ भारत के बारे में सोई भावनाओं को लोगों के मन में फ़िर से जगा दिया.
वहाँ रहने वाले भारतीयों के साथ अंग्रेज़ों के बर्ताव में क्या कोई सुधार हुआ है? क्या वे भारतीयों की ओर एक अलग नज़रिये से देख पाते हैं?
देखो, यह तो राजनीतिक सवाल है. भारतीयों के प्रति अंग्रेज़ों के रवैये के बारे में मैं कोई टिप्पणी करना नहीं चाहती.
आप पिछले दिनों अमेरिका में थीं. वहाँ के लोग कितने उत्सुक हैं इस महोत्सव को लेकर?
बहुत! वहाँ अख़बारों -पत्रिकाओं में भारत के बारे में खूब छप रहा है. "नॅशनल जियोग्राफ़िक " भारत पर आठ फीचर तैयार कर रहा है. लोग अचानक भारत के बारे में जानना चाहते हैं. यह सब जो भारत को मिला है, वह तो लाखों डॉलर के बदले भी नहीं खरीदा जा सकता था.
इस समारोह में हिस्सा लेने जा रहे और न जा रहे कलाकारों को लेकर पिछले दिनों काफ़ी विवाद खड़ा हुआ था?
हज़ारों कलाकार हैं हमारे देश में. ज़ाहिर है हर कलाकार नहीं जा सकता. यह सम्भव ही नहीं है. चयन समिति में अलग-अलग क्षेत्रों के लोग हैं. फ़िर हमें सिर्फ़ दिल्ली या बम्बई के ही कलाकारों को नहीं लेना है, मणिपुर और असम और मद्रास से भी कलाकार आएँ तभी तो भारत का सच्चा प्रतिनिधित्व हो सकेगा. अब इस सब में कुछ लोगों का नाराज़ होना तो बिलकुल स्वाभाविक है.
यह इतना बड़ा आयोजन है. इसकी तैयारी तो काफ़ी समय से चल रही होगी. लेकिन इसके बारे में लोगों को अभी कुछ दिन पहले ही पता चला है...
हाँ, पिछला एक वर्ष हमारे देश के लिए बड़ा दुःखद रहा. और ऐसे समय उत्सवों की बातें नहीं की जाती हैं. फ़िर ३१ अक्तूबर के बाद तीन महीनों तक मेरे दिमाग़ में महोत्सव का ख्याल तक नहीं आ सका. यह तो वाक़ई एक जादुई करिश्मा ही कहिए कि हम निर्धारित समय पर इस महोत्सव का आयोजन कर पा रहे हैं.
इसके लिए होने वाले खर्च का क्या हिसाब है?
कलाकारों की हवाई यात्रा और कलाकृतियों, वाद्यों आदि को वहाँ ले जाने की ज़िम्मेदारी हमारी है. वहाँ हमारा सारा खर्च वे ही लोग यानी फ़्रांस और अमेरिका की सरकार उठाएगी.
भारत महोत्सव के लिए इतना खर्च उठाने में अमेरिका या फ़्रांस की क्या दिलचस्पी हो सकती है?
शायद वे भारत से और ज़्यादा दोस्ती करना चाहते हैं.
क्या महोत्सव के दौरान भारतीय चीज़ें, जैसे कपड़े या हस्तकला की अन्य वस्तुएँ बेची जाएँगी ?
नहीं, महोत्सव तो व्यावसायिक नहीं है लेकिन हथकरघा और हस्तकला निर्यात निगम कुछ चीज़ें बेच रहा है. फ़िर अमेरिका की एक बहुत बड़ी व्यावसायिक श्रृंखला, "ब्लूमिंगडेल्स" अपनी १९ दुकानों में भारतीय सामान बेचेगी. और भी कई दुकानों में ये चीज़ें बिकेंगी. तो इस तरह से २० से ३० करोड़ रुपए तो सीधे इस बिक्री से ही मिल सकते हैं. औद्योगिक क्षेत्र में अमेरिका भारत से सहयोग करेगा, यह उम्मीद भी है.
महोत्सव में प्रदर्शन के लिए कई अनमोल कलाकृतियाँ बाहर भेजी गई हैं. उनकी सुरक्षा को लेकर आप चिंतित नहीं हैं?
चिंतित होने का सवाल ही नहीं उठता. पहले भी हम ऐसी वस्तुओं को विदेश भेज चुके हैं. और उन्हें विदेश भेजने पर किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता है. खतरा तो कोई चीज़ मद्रास से दिल्ली भेजने में भी है. और फ़िर जिन संग्रहालयों में हमारी कलाकृतियाँ जा रही हैं, वे दुनिया के श्रेष्ठ संग्रहालयों में से हैं. मैं आपको यक़ीन दिला सकती हूँ कि वहाँ इनकी पूरी हिफ़ाज़त होगी.
मैं चिंतित हूँ तो हमारे ही देश में कलाकृतियों, प्राचीन मूर्तियों, पुरातन भवनों और स्मारकों की सुरक्षा को लेकर. ये सब अनमोल हैं और देश में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं लेकिन उनकी क़द्र नहीं की जा रही. लोग पुराने भवन देखने जाते हैं तो उनकी दीवारों पर अपने नाम लिख देते हैं. पुरानी मूर्तियों की अक़्सर चोरियाँ होती रहती हैं.
देश में सांस्कृतिक मूल्य की प्राचीन वस्तुओं की सुरक्षा और रख-रखाव के उद्देश्य से हमने एक ट्रस्ट बनाया है--"इंडियन नॅशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज". हमारी सांस्कृतिक परम्परा की रक्षा करना बहुत ज़रूरी है. यह परम्परा सिर्फ़ कलाकृतियों में ही नहीं होती, हमारे आचार-व्यवहार, हमारे रहन-सहन, हमारे मूल्यों में होती है. इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि अपने बच्चों के लिए इसे सहेजकर रखें, उन्हें यह सब सिखाएँ.
एक और बात बता दूँ. जनता शासन के दौरान एक प्रदर्शनी फ़्रांस गई थी. और आज जो कुछ लोग इस महोत्सव को लेकर सवाल उठा रहे हैं, वे उस वक़्त उस प्रदर्शनी से जुड़े भी थे.
इस महोत्सव के दौरान यह भी तो हो सकता है कि हमारी बेजोड़ कलाकृतियों की प्रतिकृतियाँ बना ली जाएँ ?
जब हम अपनी कलाकृतियाँ स्मिथसोनियन और मेट्रोपोलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट में प्रदर्शन के लिए भेजते हैं, तो हमें इस तरह के सवाल नहीं पूछने चाहिए. फ़िर हमारी कलाकृतियों की प्रतिकृतियाँ बनाना कोई आसान काम थोड़े ही है.
क्या इस तरह का कोई आयोजन दूसरे ग़रीब देशों में किए जाने की कोई योजना है--यानी लातीनी अमेरिकी या अफ़्रीकी देशों में?
यह तय करने का काम तो सरकार का ही है.
Lata very nice interview. Nice questions you have asked.Very good.
ReplyDeleteThank you Aai for this lovely comment! I miss Baba, for he would surely have written kind words here to encourage me.
DeleteRelevant questions..& The answers are really perfect... Now situations are changed..Pupul Jaykar was a dignified lady... She knew what is the best in India that can be shown... & They did it.. Nice interview Lata 🌹🙏🌹
ReplyDeleteEven though it says "Anonymous", I am almost sure that this comment is from my friend Ranjana Pohankar. So, thank you Ranju for your kind comment and encouraging words!
Deleteडॉ. पंकज राठौड़...लता जी बहुत पुराने अनमोल पन्नों से संजो कर ब्लॉग लिखा जिसे पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।।पुपुल जयकर हमारे समय एक वेल नोन नाम था। उनकी अप्रोच कभी भी राजनीतिक नजरिये से नहीं होती थी। तुम्हें बधाई की इतनी लब्धप्रतिष्ठ विदुषी महिला के साक्षात्कार करने का तुम्हे अवसर मिला था।
ReplyDeleteनमस्कार पंकज. अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी देखकर बहुत अच्छा लगा. समय निकालकर इंटरव्यू पढ़ने और उस पर सुंदर टिप्पणी लिखकर मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए तहे दिल से आपका धन्यवाद...और याद रखकर टिप्पणी में ही आपने अपना नाम लिखा, इसलिए मैं समझ सकी वर्ना ब्लॉगस्पॉट में नाम की जगह सिर्फ़ anonymous दिखता है!
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